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A hindi novel written by Sunil Doiphode / registered with FWA, Andheri, Mumbai.
When a boundary between reality and illusion disappears ...
Extract from the novel :
"केमेस्ट्री के पीरियड से गिन रहा हूँ...इस लड़की ने मेरी ओर कुल पचास दफे देखा..और अभी थोड़ी देर पहले मुझपर एक नज़र डाली" विजय ने कहा.
"अच्छा..अच्छा तो ये माजरा है" राजेश ने शरारत से कहा.
"अब मैं तुम्हे एक बात बताता हूँ" राजेश ने उसका ध्यान खींचते कहा 
"कौन सी बात?" विजय ने पूछा
"एक बात बताओ तुम्हे कैसे मालूम हुआ कि उस लड़की ने तुम्हें इक्यावन बार देखा है?" राजेश ने दोबारा सवाल किया
"अरे यार हद करते हो , मैने तुम्हें बताया नहीं कि मैने खुद गिना है" विजय बोला
"तुमने गिना ...मतलब तुमने भी उसको उतनी ही दफे या शायद उस से थोड़ा ज़्यादा बार उसकी ओर देखा तभी तुम गिनती कर पाए न?" राजेश ने उसकी चोरी पकड़ते हुए कहा.
"दरअसल वह बात ऐसी है कि..." विजय थूक गटकते बोला.
"वह लड़की भी तो कह सकती है की तुमने उसको इक्यावन बार ताका" राजेश ने मुद्दे पर आते कहा.
विजय की तो जैसे बोलती ही बंद हो गयी थी.
"भाई तू उसकी साइड से है या मेरी साइड से?" विजय चिढ़ कर बोला
"मैं किसी की साइड से नही हूँ मेरे दोस्त , मैं तो बस एक बात बता रहा हूँ" राजेश कंधे उचकाते बोला.
"मतलब?" विजय ने पूछा "आख़िर कहना क्या चाहते हो?" 
"मतलब ये बच्चू.. कि तुम तो साले ठहरे किताबी कीड़े , तुम क्या जानों किताबों से परे भी कोई जिंदगी है और ऐसे अहसास हैं जिनकी गिनती नही हो सकती" राजेश ने समझाते कहा.

© Sunil Doiphode; All rights reserved.

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