Hindi Novels Books - Madhurani - CH - 6 सदा
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Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
—Oscar Wilde
बससे उडा धूल और धुंआ स्थिर होकर निचे बैठनेके बाद गणेशने अपने आसपास देखा, जेबसे रुमाल निकालकर अपना चेहरा साफ किया, और बिखरे हूए बाल व्यवस्थित करनेका प्रयास किया, और कपडोंपर जमी धुल झटकनेका प्रयास किया. जानवरके तबेलेके सामने पेढ की छांवमें, पुराने लकडीके लट्ठेपर कुछ लोग बैठे हुए थे। कोई बिडी फुंक रहा था तो कोई चिलम फुंक रहा था. सारे लोग गणेशकी तरफ ऐसे देख रहे थे मानो वह किसी दुसरी दुनियासे वहां आया हो. ऐसा पँट शर्ट पहना हुवा साफ सुथरा आदमी यहाँ बहुत ही कम आता होगा. गणेश उनकी तरफ बढने लगा. अपने हथेलीपर तंबाकू मसल रहे एक आदमीके पास जाकर वह खडा हो गया. उस आदमीने बाएं हथेलीपर मसले हुए तंबाकुके आसपास दाएं हाथसे थपथपाकर तबांकूकी धूल फुंककर उडा दी. और फिर उस बचे हुए मसले हूए तंबाकूकी चूटकी बनाकर अपना गालका जबडा एक हाथसे खिंचते हूए, दांत और गालके बिचमें रख दी.
" सरपंचका घर किधर है ? " गणेशने उस देहातीसे पुछा.
वह देहाती लकडीके लट्ठेसे उठकर गणेशके सामने आकर खडा हो गया. गणेश अब उसके जवाबकी राह देखते हूए उसकी तरफ देखने लगा. लेकिन वह आदमी किसी गुंगेकी तरह हाथसे इशारे कर कुछ बतानेकी कोशीश करने लगा. आखिर उसने गणेशको बाजु हटाकर उसके मुंहमें जमा हुई तंबाकूकी लार एक तरफ मुंह करते हूए थूंक दी और फिर बोला,
" सरपंचजीका मेहमान जी ? "
' हां ' गणेशने सर हिलाकर जवाब दिया.
उस देहातीने झटसे गणेशके हाथमें थमी बॅग अपने हाथमें ली और वहाँसे आगे चल पडते हूए बोला, " पिछे पिछे आवो जी "
कितना अच्छा आदमी है ...
मैनेतो सिर्फ पता पुछा और यह तो अपनी बॅग लेकर मुझे वहां लेकरभी जा रहा है ...
गणेशने सोचा. गणेश चुपचाप उसके पिछे पिछे चलने लगा.
" तहसिलसे आए हो का ? " उसने दुसरे हाथसे अपनी धोती ठिक करते हूए पुछा.
" हां " गणेशने जवाब दिया.
शायद सरपंचने उसे यहां मुझे लेनेके लिएही तो भेजा नही ?...गणेशने सोचा.
" मुझे लेनेके लिए संरपंचजीने भेजा है आपको ?" गणेशने पुछा.
' ना जी ... वो क्या है ना जी .. सरपंचजीका मेहमान माने ... गांवका मेहमान " वह गणेशके सवालका रुख समझते हूए बोला.
" सरपंचजी मतलब हमरे गांवकी श्यान है ... गांवकी जोभी तरक्की होवे है ... सब सरपंचजीके किरपासे ... पहले तो यहां भूर्मलभी नही आवत रही ... "
" भूर्मल ?" गणेशने प्रश्नार्थक मुद्रामें पुछा.
" माने ... एस्टी... वो तुम बड़े लोगन का कहत रहे .... बस... बस" वह खिलखिलाकर हसते हूए बोला.
वह आगे बोलने लगा " साहेब एक दफा क्या हुवा ... हमरी चाचीके भाईके लडकेने शहरसे लडकी ब्याहके लाई ... साहेब वे बडे अच्छे लोगन रहे ... शादीका क्या ठाठ रहा .. के वे लोगन भी चाट हुयी गवा ... हमको भी न्यौता रहा शादीका .... एकबार घरमें सारे लोगन साथ साथ खाना खाने बैठे रहत ... बेचारी नई दुल्हन सबको परोस रही .... वह अपने आदमीको शार परोस रहत ... वह बोला बस... बेचारी इधर उधर देखन रही ... बर्तनसे शारकी धार चलती रहत ... हमरे चाचाका लडका बडा गुसैल .... चिल्लाया ना जी वो उसपर ... जोरसे चिल्लाया ... '' बस...बस...'' क्या करेगी वो बेचारी... डर की मारी.... फटाक से निचे वही उसके सामने बैठ गई."
गणेश खिलखिलाकर हसने लगा. वह देहातीभी हंसने लगा.
" अब उसकी तरफ देखयो ... पहचानो भी नही ... की उसने घरवाली शहरसे लाई है करके... बहूत टरेन किया है हमारे चाची के भाईने ... अब मस्त जाती है खेतमें.... " उसने पिछे गणेशकी तरफ मुडकर देखते हूए कहा.
गणेश उसकी तरफ देखकर मंद मंद मुस्कुराया.
" आप तो बडी मजेदार बाते करते हो भाई .... अरे हां आपका नाम पुछना तो मै भूलही गया.
" सदा ... सदा है हमरा नाम""
" मतलब आप सदा ऐसीही मजेदार बाते करते होंगे इसलिए आपका नाम सदा रखा गया होगा " गणेशने मजाकमें कहा.
" क्या साब आपबी मस्करी करते हो गरीब आदमीकी " वह शरमाकर बोला.
चलते हूए वे एक बडे मैदानसे गुजरने लगे.
" यहां हमरे गांवका बाजार होता है ... बस्तरवारको " सदाने कहा.
"बस्तरवारको ?"
"माने गुरवार साब " वह हसते हूए बोला. .
" अच्छा " गणेशने उस खुले मैदानपर अपनी दृष्टी फेरते हूए कहा.
बस्तरवार ... यानीकी बृहस्पतीवारका वह भ्रष्ट अविश्कार होगा शायद ... गणेशने सोचा.
फिर सदा गणेशको दो तिन छोटी छोटी गलियोंमें लेकर गया. सामने एक जगह वे बजरंग बलीके मंदिरके सामनसे गुजर गए. मंदिर एक बडे उंचे चौपाहे पर, जिसे वे लोग पार कहते थे, बसा हुवा था. बगलमें एक बडासा बरगदका पेढ था. और पेढके बगलमें, वॉटर सप्लाय डिपार्टमेंटने बंधी हूई एक बडी पाणीकी टंकी थी.
" ये हमरे गांवका पार सायेब, ईहां इस बरगदकी पेढकी वजहसे बहुत बरकत है...."
"बरकत?"
" माने मतलब इहां इस पेढकी वजहसे मस्त ठंडी ठंडी छाव होवे है.. लोग बाग तो बैठतेही है ... साथमें थके हारे कुत्ते बिल्ली, गाय भैस जैसे जानवरभी बैठते है ... ईहां पेढकी छांवमें "
" आप लोगोंके गांवमें पाणीका नलभी आया हुवा दिख रहा है " पाणीकी टंकीकी तरफ देखते हूए गणेशने पुछा.
पाणीके टंकीके उपर दो चार नटखट बच्चे चढकर खेल रहे थे.
" नल कायका सायेब ... बांधकर रख दी है सिरफ पाणीकी टंकी ... कभी कभी धुपकालेमें छोडते है पाणी ... तब बहुत भिड होती है लोगोंकी ईहां "
तभी एक लाल लाल अंजिरजैसा बरगदका फल पेढसे निचे गिर गया. वहां खडे तिनचार बच्चे उधर दौड पडे. उनमेसे एकने बडी सफाईसे वह फल उठाया और बाकि लडकोकों मुंह बिचकाकर चिढाने लगा. उस लडकेने फिर वह फल हल्केसे खोलकर उसमेंके छोटे छोटे किडे सांफ कर, बाकी लडके उससे वह हथीयानेसे पहले झटसे अपने मुंहमें डाल दिया. गणेशने वह किडे देखकर बुरासा मुंह किया था. और आश्चर्यसे वह उस लडकेको देख रहा था.
" अरे सायेब बहुत मस्त लगता है .. तुमभी कभी खाकर देखना... " सदा गणेशका बुरासा हुवा मुंह देखकर बोला.
मंदीरके बगलसे मुडकर सदा गणेशको लेकर आगे जाने लगा. सामने रास्ता पहले गलीसे थोडा चौडा था. रस्तेके दोनो तरफ मट्टीसे बने, गोबरसे सने हूए मकान थे. वही दाई तरफ सामने एक किराने की दुकान थी. किराना दुकानके दोनो तरफ पत्थरसे बने हुए दो चबुतरे थे. वही चबुतरेपर काफी लोग भिड बनाकार बैठे हुए थे. कोई बिडी फूंक रहा था तो कोई चिलम फूंक रहा था. कोई चिलम में तंबाकू भर रहा था को कोई बाते हांक रहे थे. सदा गणेशको वहांसे ले जाने लगा था तो सारी नजरे उसकी तरफ मुड मुडकर देखने लगी. गणेशभी उनकी तरफ देख रहा था. देखते हूए उसकी नजर दुकानके कॅश काऊन्टरपर चली गई. आश्चर्यसे वह उधर देखताही रहा. क्योंकी काऊंन्टरपर एक सुंदर जवान औरत बैठी हूई थी. एक दुकानके काऊंन्टरपर, वहभी इतने पिछडे हूए देहातमें, एक औरतने बैठना इसका उसे आश्चर्य लग रहा था. अब कहा उसके खयालमें आया था की वहां दुकानके दोनो तरफ लोग मधू मख्खीयोंकी तरह इतनी भिड बनाकर क्यों बैठे हूए है. वहां काऊंन्टरपर बैठे औरत का रहन सहन किसी शहरकी औरतसे कम नही था. वह उसकी मुलायम गोरी त्वचा. बाल लंबे. होठोंपर लिपस्टीक लगाए जैसी नैसर्गीक लाली. चेहरा मानो मेकअप किया हो ऐसा साफ सुथरा. सिर्फ वह उसके ठोडीपर गुदे हूए तिन टीके उसके रहन सहनसे मेल नही खाते थे. उसने गुलाबी रंगकी पतली और मुलायम साडी पहनी हुई थी. और मामुली गहरे गुलाबी रंगकाही छोटी छोटी आस्तिनवाला ब्लाऊज पहना हूवा था. उन छोटी छोटी आस्तिनकी वजहसे उसकी वह गोरी, और भरी हूई बाहें औरही मादक दिख रही थी. गणेश पलभर रुककर उसकी तरफ देखनेके अपने मनके लालच को रोक नही सका. उस औरत की तरफ देखकर उसे किसी रेगिस्तानमे गलतीसे कोई गुलाब का फुल उगा हो ऐसा लग रहा था. लेकिन एक बात उसके बिना ध्यानमे आए नही रह सकी, की अगलबगलके लोग जिस तरहसे उसकी तरफ देख रहे थे, कमसे कम उसकी वजहसेतो उस औरतका ध्यान उसकी तरफ जाना चाहिए था. लेकिन वह काऊंटरपर बैठकर अपने दुकानमें आए ग्राहक अटेंड करनेमें और दुकानमें काम कर रहे नौकरको सुचना देनेमे व्यस्त थी. या कमसे कम वैसा जतानेकी चेष्टा कर रही थी. उसकी हर अदा और अंदाज एकदम बिनदास लग रहा था. आदमी होनेके नाते एक स्त्रीने, और वहभी जब वह उसकी तरफ घूरके देख रहा हो, उसने ऐसी उसकी उपेक्षा करना उसे अच्छा नही लगा. उसके मर्दाना अहंको चोट पहूंची थी. वैसे गणेशभी दिखनेके मामलेमे कुछ कम नही था. एकसे बढकर एक सुंदर युवतीया अबभी, उसके शादीको पांच सालके उपर हो जानेके बादभी, उसपर मरती थी. झटसे उसने अपने आपको संभाला और वह सदाके पिछे पिछे जाने लगा. चलते हूए वह अपने दिमागसे वे विचार झटकर निकालने की कोशीश कर रहा था. लेकिन उसे अपमानीत लग रहा था और दिलमे न जाने क्यूं एक कसकसी जाग उठी थी.
क्रमश:...
Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
—Oscar Wilde
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